एनडीटीवी पर बैन: ये कैसी सजा, ये किसको सजा
४ नवम्बर २०१६भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. स्वतंत्र मीडिया और कानून सम्मत राज्य आधुनिक लोकतंत्र का आधार है. एनडीटीवी को दी गई चैनल बंद करने की सजा इन दोनों ही का मखौल उड़ाती है. लोकतंत्र में मीडिया का काम सिर्फ सरकार का समर्थन करना नहीं, बल्कि खामियों को उजागर करना है ताकि उन्हें सुधारा जा सके. और खामियों को उजागर करने में अगर गलती होती है तो उसके लिए कानून है, जो लोगों द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि सभाएं बनाती हैं. कार्यपालिका का काम संसद द्वारा बनाए गए कानून को लागू करना और न्यायपालिका का काम उसकी समीक्षा है. लगता है कि बिगड़ते हालात को सुधारने की अफरातफरी में हर इंसान चाहे वह जिम्मेदार पद पर ही क्यों न हो खुद न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका बन जाना चाहता है.
लोकतांत्रिक न्याय प्रणाली का संबल होता है कि सजा अपराध के अनुरूप हो. एनडीटीवी को दी गई सजा स्पष्ट रूप से अपराध की तुलना में सख्त नजर आती है. अगर एनडीटीवी ने अपराध किया है तो उसे सजा के रूप में इसकी आर्थिक कीमत चुकानी चाहिए. एक दिन चैनल बंद रखकर उससे ये कीमत चुकाने को कहा जा रहा है. गलती के लिए एनडीटीवी का तो नुकसान हो जाएगा लेकिन राज्य को या सरकार को इसका कोई फायदा नहीं हो रहा. क्योंकि उसके खजाने में कोई जुर्माना नहीं आएगा. इतना ही नहीं, एनडीटीवी की दिन भर में होने वाली कमाई पर मिलने वाला टैक्स भी सरकार को नहीं मिलेगा.
जिस किसी ने सजा देने की बात सोची है उसने एनडीटीवी को ही नहीं, उसे देखने वाले दर्शकों यानी नागरिकों और मतदाताओं को भी निशाना बनाया है. नागरिकों ने कोई गलती नहीं की कि उन्हें एक दिन के लिए समाचार से वंचित रखा जाए. भले ही वह एक मीडिया आउटलेट का ही क्यों न हो. लोकतंत्र में मीडिया की बहुलता लक्ष्य नहीं, साध्य तक पहुंचने का साधन होता है. यह नागरिकों को विभिन्न विचारों को पाने की संभावना देकर लोकतंत्र को मजबूत करता है और किसी एक मीडिया हाउस के वर्चस्व को मुश्किल बनाता है.
सारा मामला एक और वजह से मुश्किल लगता है और सरकार की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है. एनडीटीवी को संसदीय चुनावों से पहले मोदी और बीजेपी विरोधी तथा नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद विपक्ष समर्थक समझा जाता है. एनडीटीवी को सजा देने का मतलब सरकार का समर्थन न करने वाले एक मीडिया हाउस को अनुशासित करना समझा जाएगा. लोकतांत्रिक सरकारें बदले की भावना से काम नहीं करती. अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा में तैर रहे मोदी सरकार के लिए यह छवि अच्छी नहीं होगी.