कुछ नहीं बदला है नंदीग्राम में
४ मई २०१६नंदीग्राम के उस आंदोलन के दौरान 14 मार्च, 2007 को उग्र भीड़ पर पुलिस की फायरिंग में 14 बेकसूर लोगों की मौत ने ही राज्य में तत्कालीन वाममोर्चा सरकार के पतन की नींव रखी थी. इसी नंदीग्राम ने सिंगुर के साथ मिल कर ममता बनर्जी के सत्ता तक पहुंचने की राह बनाई थी. अब इस बार होने वाले चुनावों में इस नंदीग्राम में उद्योग ही मुद्दा हैं. राज्य विधानसभा चुनावों के आखिरी दौर में पांच मई को नंदीग्राम के लोग भी वोट देंगे.
क्या ममता के सत्ता में आने के बाद पांच सालों में कुछ बदला है? इसका जवाब यह है कि दो बार इलाके की विधायक रही फिरोजा बीबी की घर तक जाने वाली सड़क पक्की हो गई है. पुलिस की फायरिंग में फिरोजा का बेटा भी मारा गया था और वह नंदीग्राम आंदोलन का चेहरा बन गई थीं. अबकी ममता ने उनको यहां से हटा कर जिले की पांशकुड़ा सीट पर खड़ा किया है.
नंदीग्राम से ममता के चहेते सांसद शुभेंदु अधिकारी चुनाव लड़ रहे हैं. ममता ने रेल मंत्री रहते नंदीग्राम स्टेशन बना कर इलाके को रेलवे से जोड़ने की शुरूआत की थी. लेकिन वह परियोजना अब तक अधूरी है. इसके लिए जिनकी जमीन ली गई थी वह अब भी मुआवजे और रेल में नौकरी की राह देख रहे हैं. इलाके में पानी की कमी के चलते साल में एक ही फसल होती है.
इस दौरान यहां कोई उद्योग भी नहीं लगा है. बावजूद इसके इलाके के लोग तृणमूल कांग्रेस के साथ हैं. फिरोजा बीबी की सीट बदलने के बाद स्थानीय तृणमूल कार्यकर्ताओं में कुछ असंतोष जरूर पनपा था, लेकिन अब वह दूर हो गया है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीते साल दिसंबर में अपनी एक रैली में कहा था कि इस सीट से शुभेंदु लड़ेंगे क्योंकि वह उनको अपने मंत्रिमंडल में देखना चाहती हैं. लोगों के लिए संदेश साफ था.
शुभेंदु अधिकारी ने हल्दिया विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष के तौर पर इलाके में विकास की कई परियोजनाएं शुरू की हैं. इनमें सड़कें और स्ट्रीट लाइट शामिल हैं. नंदीग्राम जेटी को भी सजाया-संवारा गया है. अब वह घर-घर पेय जल पहुंचाने का वादा कर रहे हैं. लेकिन इलाके के युवकों के लिए रोजगार अब भी सबसे बड़ा मुद्दा है. ज्यादातर लोगों ने दर्जी का काम करने के लिए शहरों का रुख कर लिया है. लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार व सीपीआई नेता अब्दुल कबीर कहते हैं, "नंदीग्राम कृषिप्रधान इलाका है. वाममोर्चा ने यहां रोजगार को बढ़ावा देने का प्रयास किया था. लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने लोगों को गुमराह कर दिया. अब एक बार फिर लोगों का भरोसा हासिल करने के लिए तृणमूल यहां उद्योग लगाने के वादे कर रही है." वैसे, नंदीग्राम में सीपीआई और सीपीएम के दफ्तर तो हैं लेकिन वह शायद ही कभी खुलते हों. लेफ्टफ्रंट के काडर अब भी आतंक में दिन गुजार रहे हैं. सैकड़ों ऐसे लोग तो बीते नौ सालों से अब तक अपने घर नहीं लौट सके हैं.
दूसरी ओर, शुभेंदु अधिकारी का दावा है कि इलाके में बर्न स्टैंडर्ड की यूनिट जल्दी ही काम करने लगेगी. वहां तीन सौ युवकों को रोजगार मिलेगा. सेल और बर्न स्टैंडर्ड कंपनी की 200 करोड़ की उस परियोजना को वर्ष 2014 में ही पूरा होना था. उनका दावा है कि यहां बड़े उद्योगों से समस्या हल नहीं होगी. सरकार यहां लघु व मझौले उद्योगों को बढ़ावा देगी. पुलिस फायरिंग में अपना बेटा खोने वाले मनीरुल कहते हैं, "बड़े उद्योगों से हमारा जीवन प्रभावित होगा. लोगों की जमीन का जबरन अधिग्रहण नहीं किया जा सकता." फिरोजा बीबी के दामाद शमशेर खान कहते हैं कि तृणमूल और कहीं भले हार जाए, वह इस जिले की सभी 16 सीटों पर जीतेगी.
इंडोनेशिया के सलीम समूह की ओर से केमिकल सेज के लिए जमीन अधिग्रहण की खबरों के बाद स्थानीय लोगों ने यहां भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमिटी का गठन किया था. इस आंदोलन को शुरूआती दौर में एसयूसीआई, कांग्रेस और कुछ नक्सली संगठनों ने समर्थन दिया. तब तृणमूल कांग्रेस तस्वीर में कहीं नहीं थी. लेकिन आंदोलन के जोर पकड़ते ही ममता ने इसकी कमान अपने हाथों में ले ली थी.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि मौजूदा परिदृश्य में यहां शुभेंदु की जीत पर कोई संदेह नहीं है. लेकिन उनके जीत कर मंत्री बनने के बावजूद इलाके के लोगों का तंगहाल जीवन शायद ही बदलेगा. इसकी वजह यह है कि उनके दिमाग में वाममोर्चा सरकार के जमाने से ही यह बात कूट-कूट भर दी गई है कि बड़े उद्योग उनके दुश्मन हैं जो उनकी जमीन हड़प लेंगे.