गिलगित बल्तिस्तान नहीं बन पाएगा पाक का प्रांत
१ जून २०१८जम्मू और कश्मीर का जो हिस्सा पाकिस्तान के नियंत्रण में है उसमें से एक हिस्से को वह 'आजाद कश्मीर' कहता है जबकि दूसरा हिस्सा गिलगित बल्तिस्तान है. संयुक्त राष्ट्र के 1947 के प्रस्ताव के मुताबिक 72 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाला गिलगित बल्टिस्तान इलाका विवादित कश्मीर का हिस्सा है.
1970 में पाकिस्तान ने इसे 'आजाद कश्मीर' से अलग कर नॉर्दन एरिया के नाम से एक अलग प्रशासनिक इकाई बनाया. दशकों तक इस इलाके के लोगों पर रिमोट कंट्रोल के जरिए इस्लामाबाद से शासन चलता रहा. ना यहां कभी चुनाव हुए और न ही यहां से उठने वाली आवाजों पर कोई ध्यान दिया गया. यहां तक कि इलाके का नाम नॉर्दन एरिया से वापस गिलगित बल्तिस्तान कराने के लिए भी यहां के लोगों को लंबा संघर्ष करना पड़ा.
दुनिया की नाक में दम करने वाला इलाका
2009 में राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की सरकार ने ना सिर्फ इस इलाके का नाम बदलकर फिर से गिलगित बल्तिस्तान कर दिया बल्कि उसे कुछ हद तक स्वायत्ता दी गई. उसकी अपनी असेंबली बनी और अपना मुख्यमंत्री भी. हालांकि आलोचक कहते हैं कि स्वायत्ता सिर्फ दिखावे की थी क्योंकि असली सत्ता मुख्यमंत्री के हाथ में नहीं, बल्कि पाकिस्तान की संघीय सरकार की तरफ से नियुक्त सदस्यों की एक काउंसिल और गवर्नर के हाथ में थी.
अब इस इलाके को वे सभी अधिकार देने की बात हो रही है, जो पाकिस्तान के अन्य चारों प्रांतों पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तून ख्वाह के पास हैं. इस बारे में पिछले दिनों गिलगित बल्तिस्तान ऑर्डर 2018 मंजूर किया गया, लेकिन इस पर ना सिर्फ भारत ने सख्त नाराजगी जताई है बल्कि इस इलाके के लोगों को भी यह ऑर्डर गले नहीं उतर रहा है.
भारत ने दिल्ली में पाकिस्तान के डिप्टी हाई कमिश्नर को तबल कर इस बारे में सख्त विरोध दर्ज कराया है. भारत का कहना है कि गिलगित बल्तिस्तान का इलाका भी उस पूरे जम्मू कश्मीर राज्य का हिस्सा है जिसने 1947 में भारत में विलय का फैसला किया था. भारत ने गिलगित बल्टिस्तान के दर्जे में किसी भी तरह के बदलाव को गैर कानूनी करार दिया है. जवाबी कदम उठाते हुए पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने भी इस्लामाबाद में भारत के डिप्टी हाई कमिश्नर को तलब किया और भारत के बयान पर विरोध दर्ज कराया गया.
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गिलगित बल्तिस्तान ऑर्डर 18 को लेकर विरोध पाकिस्तान के भीतर भी हो रहा है. गिलगित बाल्तिस्तान में विपक्षी पार्टियों का कहना है कि उनके इलाके को अधिकार नहीं दिए जा रहे हैं बल्कि उन्हें सिर्फ छला जा रहा है. पाकिस्तानी पत्रकार सबूख सैयद कहते हैं, "नए ऑर्डर के तहत गिलगित बल्तिस्तान को संवैधानिक रूप से एक प्रांत का दर्जा नहीं दिया जा रहा है, बल्कि संविधान के 18वें संशोधन के तहत वे अधिकार दिए जा रहे हैं जो बाकी प्रांतों को मिले हुए हैं. लेकिन यहां के लोग चाहते हैं कि कानूनी और संवैधानिक तौर पर उन्हें देश के बाकी लोगों के बराबर माना जाए."
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भले ही गिलगित बल्तिस्तान पर 70 साल से पाकिस्तान का नियंत्रण है लेकिन यहां रहने वाले लोगों को पूरी तरह पाकिस्तान का नागरिक नहीं माना जाता. पाकिस्तानी संविधान के आर्टिकल 1 में गिलगित बल्तिस्तान को पाकिस्तानी क्षेत्र का हिस्सा भी नहीं माना गया है, बल्कि उसे एक अलग दर्जा दिया गया है. पाकिस्तानी पत्रकार आतिफ तौकीर कहते हैं, "कानूनी रूप से गिलगित बल्तिस्तान कश्मीर के विवादित इलाके का हिस्सा है. इसलिए जब तक कश्मीर समस्या का समाधान नहीं हो जाता, तब तक पाकिस्तान के लिए गिलगित बल्तिस्तान को संवैधानिक रूप से अपना हिस्सा बनाना संभव नहीं होगा."
कई विश्लेषक मानते हैं कि पाकिस्तान सरकार गिलगित बल्तिस्तान को अलग प्रांत बनाने की मांग को इसलिए भी खारिज करती रही है कि इससे कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के मुताबिक हल कराने की उसकी मांग कमजोर पड़ेगी. मौजूदा हालात में इस बात की संभावना नहीं दिखती कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के मुताबिक जनमत संग्रह के जरिए कश्मीर मुद्दा हल होगा. पाकिस्तानी नीति निर्माता समझते रहे हैं कि अगर कभी ऐसा हुआ तो गिलगित बल्तिस्तान के लोग उसके हक में मत देकर कश्मीर पर उसके दावे को मजबूत करेंगे. लेकिन अगर गिलगित बल्टिस्तान को अलग प्रांत बना दिया गया तो फिर वह कश्मीर विवाद से अलग हो जाएगा.
सबूख सैयद कहते हैं "गिलगित बल्तिस्तान के लोग अपने आपको कश्मीर का हिस्सा नहीं मानते और अपने आपको उससे अलग करके देखते हैं. वे कश्मीर से अलग अपनी एक पहचान चाहते हैं और गिलगित बल्तिस्तान को संवैधानिक रूप से पाकिस्तान का पांचवां प्रांत बनाने की मांग कर रहे हैं. वे पाकिस्तानी संसद के दोनों सदनों में प्रतिनिधित्व चाहते हैं. साथ ही उन्हें सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच और संघीय सरकार की तरफ से मिलने वाले आर्थिक फंड में हिस्सा चाहिए."
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नए ऑर्डर के अनुसार जो शक्तियां अब तक गिलगित बल्टिस्तान काउंसिल के पास थीं, उन्हें एक चुनी हुई असेंबली को सौंपा जाएगा. इस असेंबली को कानून बनाने और उन्हें लागू करने का अधिकार दिया जाएगा. साथ ही वहां पर सिविल सर्विस और अदालती ढांचा तैयार करने का वादा भी किया गया है. लेकिन ऑर्डर का विरोध करने वाले इन सब अधिकारों को नाकाफी मानते हैं. सबूख सैयद के मुताबिक, "इलाके के लोग कहते हैं कि यह जो हमें चीजें दी जा रही हैं वे पीनट्स हैं क्योंकि हमें अधिकार तो दिए जा रहे हैं, लेकिन संवैधानिक तौर पर स्वीकार नहीं किया जा रहा है."
पत्रकार आतिफ तौकीर कहते हैं कि नए ऑर्डर में गिलगित बल्तिस्तान को अधिकार देने की बात बड़े जोर शोर से की गई है, लेकिन इसके बावजूद वहां पाकिस्तान की सरकार का दखल बना रहेगा. वह बताते हैं, "गिलगित बल्तिस्तान में बनने वाले किसी भी कानून या नियम को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री खारिज कर सकता है जबकि प्रधानमंत्री की तरफ से जाने वाले निर्देशों को गिलगित बल्तिस्तान की सरकार और असेंबली को मानना ही होगा." यही नहीं, गिलगित बल्तिस्तान में नौकरियों के लिए पाकिस्तान का कोई भी नागरिक आवेदन कर सकता है जबकि इस इलाके के लोगों को बाकी जगहों पर इस तरह आवेदन करने की अनुमति नहीं होगी क्योंकि वे संवैधानिक रूप से पाकिस्तान के नागरिक ही नहीं हैं.
गिलगित बल्तिस्तान की मौजूदा असेंबली में पाकिस्तानी पीपल्स पार्टी, तहरीक ए इंसाफ और आवामी एक्शन कमेटी जैसी पार्टियों के सदस्य इस ऑर्डर को मौजूदा स्वरूप में कबूल करने को तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि यह ऑर्डर गिलगित बल्तिस्तान लोगों को अधिकार दे नहीं रहा है बल्कि अधिकार छीन रहा है. उनके मुताबिक इससे इलाके के लोग पाकिस्तान की सरकार से और दूर होंगे.
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