अप्रैल 1986 के आखिरी दिनों में बसंत की वो दुपहरी मुझे अब भी साफ साफ याद है. मैं जंगल में खेल रही थी और अपने कुछ दोस्तों के साथ एक किला बना रही थी कि तभी बारिश के एक झोंके ने हमें घर लौटने को मजबूर कर दिया. वो मौजमस्ती भरा एक खुशगवार दिन था.
हमें बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि कुछ ही घंटों पहले, यूक्रेन के शहर प्रिप्याट के पास चेर्नोबिल पावर प्लांट के नंबर 4 रिएक्टर में विस्फोट हो गया था.
कई दिनों बाद जब खबर बाहर आई, चेर्नोबिल की तबाही और रेडिएशन से भरे भविष्य का खौफ जल्द ही मेरे किशोर दिनों पर घिर आए. लेकिन सिर्फ वे स्मृतियां ही यूरोपीय संघ आयोग के एक प्रस्ताव को लेकर मेरी चिंता की अकेली वजह नहीं हैं. आयोग ने परमाणु ऊर्जा और प्राकृतिक गैस को ईयू टेक्सोनमी (वर्गिकी) में एक पर्यावरण-अनुकूल प्रौद्योगिकी के रूप में शामिल करने का प्रस्ताव रखा है.
इसका मतलब होगा एटमी ऊर्जा को एक टिकाऊ विकल्प के रूप में देखना और निवेशकों के सामने इसकी सिफारिश करना- इस तरह पर्यावरण बचाने की कोशिशों का मजाक उड़ाना.
परमाणु हादसों की कीमत कौन चुकाएगा?
यूरोपीय संघ आयोग परमाणु ऊर्जा की कीमतों को पूरी तरह नजरअंदाज कर रहा है. नये परमाणु पावर प्लांट बनाने और यहां तक कि अपेक्षाकृत छोटे संयंत्रों को बनाने में भी जो पैसा लगेगा उसे अगर छोड़ भी दें तो ज्यादा अहम और साफतौर पर सवाल ये है कि दुर्घटना की स्थिति में मुआवजा कौन भरेगा या भरपाई कौन करेगा.
अकेले जर्मनी में चेर्नोबिल विनाश के नतीजों की अनुमानित संघीय कीमत करीब एक अरब यूरो आंकी गई थी. दुनिया भर में, चेर्नोबिल से फौरी आर्थिक नुकसान 200 अरब यूरो से ज्यादा होने का अनुमान लगाया गया है. उस दुर्घटना से चौतरफा फैली बीमारी की कीमत जो है सो अलग.
मार्च 2011 में जापान के फुकुशिमा में परमाणु हादसे से हुए 177 अरब यूरो के भारी नुकसान में स्वास्थ्य कीमतें तो जोड़ी ही नहीं गई थीं. नुकसान का ये आकलन जापान सरकार ने 2017 में किया था. इनमें से अधिकांश कीमतों की भरपाई जापानी करदाता की जेब से की जाती रही है क्योंकि तबाही के बाद संचालक कंपनी टेप्को को दिवालिएपन से बचाने के लिए उसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था.
भरपाई करनी होगी करदाता को
ये सारी बात हमें समस्या की जड़ पर ले आती हैः यूरोप में एटमी ऊर्जा ठिकानों के संचालकों को जो धनराशि, दुर्घटना जैसी स्थिति के लिहाज से बतौर मुआवजा या भरपाई अलग रखनी होती है वो हास्यास्पद तौर पर बहुत ही मामूली है. चेक गणराज्य में एटमी ऊर्जा संयंत्रों को आपात स्थितियों के लिए 74 अरब यूरो अलग रखने होते हैं, हंगरी में ये राशि 12 करोड़ 70 लाख यूरो है.
फ्रांस इसके समर्थन में है तो वहीं जर्मनी विरोध में. यूरोपीय परमाणु ऊर्जा को हरित करने के प्रस्ताव और योजना के झंडाबरदार और पूरी दुनिया में परमाणु ऊर्जा के सबसे बड़े उपभोक्ता देश फ्रांस में- जहां 70 फीसदी ऊर्जा सप्लाई एटमी संयंत्रो से होती है- वहां भी संयंत्र चलाने वालों को हादसे की स्थिति में महज 70 करोड़ यूरो ही अलग रखने होते हैं. यूरोप में अगर कभी कोई बड़ा एटमी हादसा हुआ तो उससे 100 से 430 अरब का नुकसान होना तय है. उस सूरत में प्रभावित देश और उनके करदाता नागरिक ही उस नुकसान की भरपाई करने को विवश होंगे.
जर्मनी के नये वित्त मंत्री और नवउदारवादी फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता क्रिस्टियान लिंडनर ने इस स्थिति की आलोचना की है. यूरोपीय संघ की नयी वर्गिकी में एटमी ऊर्जा को स्थान मिलने के बारे में भी वे अपना असंतोष और संशय व्यक्त कर चुके हैं. उनका कहना है, "अगर राज्य जिम्मेदारी या दायित्व उठाने को तैयार होते हैं तभी इस ऊर्जा स्रोत को मुख्यधारा में लाया जा सकता है- बाजार से संकेत ये है कि ये एक टिकाऊ ऊर्जा स्रोत नहीं हो सकता है.”
जर्मन सरकार ने यूरोपीय संघ आयोग की योजना के खिलाफ वोट करने का इरादा जताया है- और ये सही भी है. दूसरी तरफ ऑस्ट्रिया और लक्जमबर्ग ने एक और साहसी कदम उठाते हुए ऐलान किया है कि अगर ये विवादास्पद प्रस्ताव अमल में आया तो वो ब्रसेल्स यानी यूरोपीय संघ के मुख्यालय के खिलाफ अदालत में जाएंगे.
छोटे मॉड्युलर रिएक्टरों से भी खतरा है
इस बीच फ्रांस में राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों परमाणु ऊर्जा को जलवायु सुरक्षा के लिए एक खुशकिस्मत दांव बता रहे हैं. तथ्य यह है कि देश के 10 रिएक्टर फिलहाल बंद पड़े हैं, इनमें से तीन नये हैं लेकिन सुरक्षा चिंताओं से बंद हैं- लेकिन ये सब फिलहाल फ्रांस सरकार के लिए कोई खास मुद्दा नहीं है. वो छोटे माड्युलर रिएक्टरों (एसएमआर) से किसी परमाणु हादसे से जुड़े डर को हटाने की भरसक कोशिशों में लगी है. ये छोटे ऊर्जा ठिकाने पारंपरिक परमाणु ठिकानों के आकार के करीब एक दहाई हैं- और इसीलिए दुर्घटना की स्थिति में इन्हें कम खतरनाक माना जाता है.
हालांकि इस योजना में कई तरह की कमियां भी हैं. एक बड़ी कमी यह है कि एक अकेले बड़े एटमी रिएक्टर जितनी क्षमता हासिल करने के लिए इस किस्म के बहुत सारे छोटे रिएक्टरों की जरूरत होती है. परमाणु कचरा प्रबंधन की सुरक्षा से जुड़े जर्मन संघीय दफ्तर (बेस) ने हाल में आगाह किया था कि इतनी अधिक संख्या परमामणु हादसे का जोखिम और अधिक बढ़ा देगी.
क्या ये बात सिर्फ जलवायु सुरक्षा की है?
यूरोपीय संघ के संयुक्त शोध केंद्र की एक रिपोर्ट से भी बेस इत्तफाक नहीं रखता है, वो उसकी आलोचना करता है. यूरोपीय संघ आयोग ने इसी रिपोर्ट के आधार पर एटमी ऊर्जा की पर्यावरणीय अनुकूलता का अपना आकलन तैयार किया था. ये रिपोर्ट आंशिक रूप से ही इंसानों और पर्यावरण और भावी पीढ़ियों के लिए एटमी ऊर्जा के जोखिमों का उल्लेख करती है. इस रिपोर्ट में वैज्ञानिक कार्य के कुछ सिद्धांतों का सही ढंग से अनुपालन भी नहीं किया गया है. बेस के मुताबिक इसी रिपोर्ट के भरोसे, एटमी ऊर्जा उपयोग का व्यापक आकलन नहीं किया जा सकता है.
इससे यूरोपीय संघ के मुख्यालय ब्रसेल्स के उस दावे को लेकर और शक खड़े हो गए हैं जिसमें कहा गया है कि ब्रसेल्स, बुनियादी रूप से जलवायु सुरक्षा के लिहाज से यूरोपीय संघ की नयी वर्गिकी में परमाणु ऊर्जा को शामिल करना चाहता है. इससे उलट, लगता यही है कि ये फैसले राजनीतिक दबाव में किए जा रहे हैं, खासकर फ्रांस की ओर से.
परमाणु ऊर्जा शक्ति के रूप में फ्रांस अपने संयंत्रों को हर कीमत पर बनाए रखना चाहता है. माक्रों ने दिसंबर में इस बारे में स्पष्ट कर दिया था. उनका कहना है, "नागरिक परमाणु ऊर्जा के बिना कोई सैन्य परमाणु ऊर्जा नहीं हो सकती है और सैन्य एटमी ऊर्जा के बिना कोई नागरिक एटमी ऊर्जा नहीं हो सकती है.”