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क्या प्रधानमंत्री बन जायेंगे राहुल?

२५ नवम्बर २०१७

राहुल गांधी हाशिये पर खड़ी कांग्रेस की कमान थामने की तैयारी कर रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि वे चाहें तो अपनी दादी से सीख कर बहुत कुछ कर सकते हैं.

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Indien - Sonia Gandhi und Rahul Gandhi
तस्वीर: picture-alliance/dpa

इंदिरा गांधी के करीब रहे एक वरिष्ठ राजनेता ने पिछले दिनों कहा कि भारत की अकेली महिला प्रधानमंत्री का जीवन असंभव को संभव करने की चाह रखने वालों के लिए एक सबक है. राहुल गांधी को कांग्रेस का नेतृत्व तब सौंपने की बात हो रही है जब पार्टी 1947 के बाद सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. आजाद भारत के 70 सालों में से 49 सालों तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी 2014 के चुनाव में बुरी तरह हारी और उसकी झोली में सिर्फ 44 सीटें आईं. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारी बहुमत से भारतीय जनता पार्टी ने संसद में जीत दर्ज की. चुनाव अभियान में मोदी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार को मां बेटे (सोनिया गांधी, राहुल गांधी) की सरकार कह कर निशाना बनाया. 

Indira Gandhi Indien Ex-Premierministerin Archibild 1971
तस्वीर: picture-alliance/united archives

नेहरू गांधी वंश कांग्रेस पार्टी के लिए एक तरह से पर्यायवाची रहा है. जवाहर लाल नेहरू से शुरू हुई इस वंश परंपरा और कांग्रेस पार्टी का जो संगम हुआ उसमें में अब राहुल गांधी का दौर आने वाला है. फिलहाल वो पार्टी के उपाध्यक्ष हैं लेकिन जल्दी ही उन्हें अध्यक्ष बना कर उनके नेतृत्व में 2019 का आम चुनाव लड़ने की तैयारी चल रही है. यहां उन्हें नरेंद्र मोदी का सामना करना है. सोनिया गांधी उन्हें अगला नेता बनायें उसके पहले से ही राहुल के बारे में कहा जाता रहा है कि वे इस योग्य नहीं है. राजनीतिक विश्लेषक निलांजन मुखोपाध्याय कहते हैं, "उन्हें असमय छुट्टियों पर चले जाने वाले एक अनिच्छुक नेता के रूप में देखा जाता है. इसके साथ ही वे नियमित रूप से ऐसे बयान देते रहते हैं जो उन्हें खारिज करने में जुटी बीजेपी के प्रचार तंत्र को अपनी बात उचित ठहराने का मौका देते हैं."

हालांकि बीते कुछ महीनों से ऐसा लग रहा है कि राहुल ने इंदिरा गांधी से कुछ सबक लिये हैं. गांधी परिवार की जीवनी लिखने वाले राशिद किदवई के मुताबिक इंदिरा गांधी का करियर यह सिखाता है कि किस तरह से विपरीत परिस्थितियों का सामना किया जाए और एक विजेता के रूप में उभरा जाए. 1959 में जब इंदिरा गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया तो उन्हें पार्टी के नेताओं ने "गूंगी गुड़िया" कहा था लेकिन 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ जंग जीत कर उन्होंने खुद को "दुर्गा" के रूप में स्थापित कर लिया.

Indien Kongresspartei Rahul Gandhi und Sonia Gandhi
तस्वीर: picture-alliance/dpa

इंदिरा गांधी और कांग्रेस पार्टी को देश में लोकतंत्र को दबाने की कीमत 1977 के चुनाव में भारी शिकस्त से चुकानी पड़ी थी. उस वक्त के बारे में राशिद किदवई कहते हैं, "उनके पास अचानक कोई घर नहीं था, उनके निजी सुरक्षा गार्ड हट गये, वो अब सांसद भी नहीं थी, उनका सुरक्षा घेरा हटा लिया गया, उनके गिरफ्तार होने की आशंका थी." इंदिरा गांधी जानती थी कि सत्ता से क्या फर्क आता है उन्होंने धैर्य और दृढ़ता से अपनी राह बनायी. 1980 में उन्होंने फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल कर ली.

चुनाव में हार ने सोनिया और राहुल गांधी पर उस तरह का कोई असर नहीं डाला है. उनके घर, आर्थिक सुरक्षा और देश से बाहर जाने की आजादी पर कोई असर नहीं पड़ा है. मुखोपाध्याय कहते हैं, "राहुल गांधी में सत्ता की भूख नहीं है." इसके साथ ही वे कहते हैं लेकिन वे बदल रहे हैं, "शायद इसके पीछे उनकी मां का खराब स्वास्थ्य या फिर उस सहारे का मिटना रहा है."

राहुल गांधी ने नोटबंदी और जीएसटी के मामले को खूब उठाया है साथ ही बीजेपी से भारत के उदार मूल्यों के खतरों को भी. इस साल गर्मियों में अमेरिका की यात्रा से लौटने के बाद वो आत्मविश्वास से भरे भी दिख रहे हैं. उन्होंने यह भी माना है कि "वंशवाद एक समस्या है" लेकिन इसके साथ ही वे कहते हैं, "असल सवाल यह है कि कोई शख्स वास्तव में ...सक्षम और संवेदनशील है या नहीं." किदवई कहते हैं, कांग्रेस पार्टी बीते एक दशक में एक व्यक्तित्व के दम पर चलने वाली पार्टी बन गयी है लेकिन "वंशवाद लोगों को बहुत परेशान करता नहीं दिखता है, खासतौर से कांग्रेस पार्टी के सदस्यों और समर्थकों को."

मोदी और बीजेपी को एक असरदार जवाब देने के साथ ही राहुल गांधी के लिए अपनी पार्टी के बुजुर्ग नेताओं को संभालने की भी चुनौती होगी जो बदलाव के विरोधी लेकिन अनुभवी हैं. मुखोपाध्याय कहते हैं, "उन्हें निश्चित रूप से अपनी दादी के दिशानिर्देशों से गुर सीखने चाहिए, जिन्होंने 1977 में हार के बाद राजनीतिक रूप से बेकार लोगों को चुन चुन कर हटाया लेकिन भरोसेमंद और नये लोगों को साथ रख कर पार्टी को दोबारा खड़ा किया."

विश्लेषकों को यह भी कहना है कि अक्सर "पप्पू" कहे जाने वाले राहुल गांधी प्रधानमत्री में तब्दील हो सकते हैं बशर्ते कि वो अपनी दादी मां जैसी दृढ़ता दिखायें. मुखोपाध्याय ने कहा, "उन्हें यह समझना होगा...वह कांग्रेस की आखिरी उम्मीद हैं. यह वो जिम्मेदारी है जिसे छोड़ना वे बर्दाश्त नहीं कर सकते."

एनआर/ओएसजे (रॉयटर्स)