अरब में सिर उठाता अल कायदा
९ जनवरी २०१४अल कायदा की इस रणनीति के कारण सीरिया के विद्रोही बशर अल असद की सत्ता पलटने के अपने मुख्य उद्देश्य से भटक गए. अब वे सुन्नी जिहाद का हिस्सा बन रहे हैं, जिनका लक्ष्य कुछ और है. सुन्नियों के दिलो दिमाग में शियाओं के प्रति नफरत भरी जाती है. उदारवादी विद्रोहियों के लिए मुश्किल हो रही है कि उनके कुछ साथी कट्टरवाद की तरफ बढ़ चले हैं.
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में मध्य पूर्व केंद्र के निदेशक फवाज ए गेरगेज का कहना है, "सीरिया के युद्ध ने इराक की आग में घी का काम किया है. दोनों देशों के संकट एक दूसरे के लिए परेशानी बन रहे हैं और दोनों देशों में स्थिति बेहद जटिल कर रहे हैं."
बढ़ रही है दरार
गेरगेज का कहना है सीरिया की जंग के साइड इफेक्ट अब अरब की सड़कों पर नजर आ रहे हैं, जहां सुन्नी और शियाओं के बीच संघर्ष बढ़ता जा रहा है. लेकिन अभी क्यों? जानकारों का कहना है कि सीरिया की वजह से सुन्नी और शियाओं के बीच की दरार बढ़ी है और इसका सबसे बुरा असर उन उदारवादी लोगों पर पड़ रहा है, जिनका खास मकसद सीरिया से बशर अल असद की सत्ता खत्म करना था. उनका कहना है कि पश्चिम वहां हस्तक्षेप करने से जितना बचेगा, उसका उतना खामियाजा भुगतना पड़ सकता है क्योंकि इससे इलाके में तनाव और बढ़ेगा.
अल कायदा से जुड़े ग्रुप इस्लामिक स्टेट और इराक एंड लेवेंट (आईएसआईएल) का उद्देश्य किसी से छिपा नहीं है. हाल के दिनों में इसकी जड़ें गहरी हुई हैं. यहां तक कि इसके लड़ाके सीरिया में भी इलाकों पर कब्जा कर रहे हैं. हाल ही में इन्होंने इराकी शहर फलूजा पर कब्जा कर लिया. रामादी के भी बहुत बड़े हिस्से पर इनका बोलबाला है, जिसकी सीमा सीरिया से मिलती है.
इन घटनाओं के बाद इराक के प्रधानमंत्री नूरी अल मलिकी की सरकार पर सबसे बड़ा खतरा पैदा हुआ है. वह इराक में शिया बहुल सरकार चला रहे हैं. अमेरिका की फौज पहले ही 2011 में देश छोड़ कर जा चुकी है.
शियाओं पर निशाना
लेबनान में हिज्बुल्लाह की कमान भी शिया मुसलमानों के हाथ में है, जो सीरिया की सरकार का साथ दे रहे हैं. बेरूत में पिछले हफ्ते एक आत्मघाती बम हमला हुआ, जिसके बाद आईएसआईएल ने इसकी जिम्मेदारी ली. बेरूत में अमेरिकी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अहमद मुसाली का कहना है कि अमेरिका के इलाका छोड़ने और सीरिया में संघर्ष शुरू होने के बीच ऐसा वक्त पैदा हुआ, जिसमें अल कायदा को आगे बढ़ने का मौका मिल गया. उनका कहना है, "यही वजह है कि हम आज देख रहे हैं कि सभी किस्म के अल कायदा ग्रुप सीरिया, इराक और लेबनान की तरफ आ रहे हैं. खतरा इस बात का है कि इन ग्रुपों को बहुत ज्यादा कामयाबी मिल सकती है."
सबसे ज्यादा नुकसान सीरिया में आईएसआईएल का प्रभाव बढ़ने से हुआ है. यहां तक कि सीरिया में राष्ट्रपति असद के खिलाफ लड़ रहे गुटों में भी गुटबाजी शुरू हो गई है. कई लोग अब इस बात का आरोप लगा रहे हैं कि सीरिया में संघर्ष के नाम पर कुछ लोग कट्टरवाद फैला रहे हैं.
अमेरिका में भी इस बात पर गंभीरता से चर्चा हो रही है. पिछले महीने न्यूयॉर्क टाइम्स के संपादकीय में अमेरिकी राजनयिक रायन क्रोकर के हवाले से लिखा गया कि विकल्प से बेहतर तो असद का शासन ही है, "हमें उस भविष्य के बारे में बात करनी है, जिसमें असद को भी शामिल किया जाए. वह बहुत बुरे हो सकते हैं लेकिन कुछ इससे भी खराब है." इस संपादकीय की खासी आलोचना भी हुई.
अमेरिका के बाद
साल 2007 में अमेरिका और इराक के संयुक्त सैनिक अभियानों की वजह से अल कायदा और दूसरे सुन्नी संगठनों पर खासा असर पड़ा था. आईएसआईएल और सीरिया के नुसरा फ्रंट ने अब मिल कर काम करने की बात कही है. अल कायदा की कमान मिस्री डॉक्टर अयमान अल जवाहिरी के हाथों में है. आईएसआईएल के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन ऐसी रिपोर्टें हैं कि इसे खाड़ी के बड़े रईस लोगों से पैसे मिलते हैं और साथ ही यह तस्करी और फिरौती जैसी कार्रवाइयों से भी पैसे जुटाता है.
इराक, सीरिया और लेबनान में फैले सुन्नी मुसलमानों का सदियों पुराना कबायली रिश्ता भी रहा है. उनका मानना है कि सरकारें उनका प्रभाव कम कर रही हैं. उनका मानना है कि ये सब शिया बहुल ईरान के साथ अच्छे रिश्ते बनाने में जुटी हैं. अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मेरी हार्फ का कहना है, "हम इराक में देख रहे हैं कि वहां लंबे वक्त से जातीय तनाव चल रहा है और सीरिया में सक्रिय आतंकवादी इसे हवा दे रहे हैं."
इस बीच आईएसआईएल ने एक ऑडियो संदेश जारी किया है, जिसमें सीरिया की सत्ता को उखाड़ फेंकने और इराक, सीरिया, लेबनान और यमन में शियाओं के खिलाफ संघर्ष की बात कही गई है.
एजेए/एमजे (एपी)