अभी कितना और नीचे जाएगी कांग्रेस?
१७ मार्च २०१७भारत में मौजूदा दौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी के उभार का दौर है तो वहीं कांग्रेस का ग्राफ लगातार नीचे जा रहा है. सवा अरब की आबादी वाले भारत में हर छठा इंसान उत्तर प्रदेश में रहता है. राज्य में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को समाजवादी पार्टी के गठबंधन के बावजूद सिर्फ छह प्रतिशत वोट और सात सीटों पर जीत मिली.
देश पर 70 साल तक राज करने वाली पार्टी अब दिशाहीन दिखाई देती है. पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी देश के मतदाताओें पर कोई छाप छोड़ने में लगातार नाकाम साबित हो रहे हैं. अपनी मां और कांग्रेस सोनिया गांधी की बीमारी के चलते अब लगभग वही कांग्रेस पार्टी को चला रहे हैं. लेकिन बात नहीं चल पा रही है.
बावजूद इसके राहुल गांधी को पार्टी में कोई चुनौती नहीं दे रहा है. हालांकि कई नेता बदलाव की पैरवी कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद, कांग्रेस नेता अभिषेक मनुसिंघवी ने कहा, "निराशा वाली कोई बात नहीं है. कुछ बहुत बड़े बदलाव करने होंगे और मुझे इसमें कोई शक नहीं है कि बदलाव होंगे."
हालांकि हर कोई इतना आशावादी नहीं है. जम्मू कश्मीर के पू्र्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने ट्वीट किया, "आज ऐसा कोई नेता नहीं है जिसकी पूरे भारत में स्वीकार्यता हो और जो 2019 में मोदी और बीजेपी का मुकाबला कर सके." उनका इशारा भारत के अगले आम चुनावों की तरफ है. अब्दुल्लाह के मुताबिक, "इस हिसाब से तो 2019 को भूल ही जाइए और 2024 की तैयारी कीजिए."
विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस इस समय नेतृत्व के संकट से जूझ रही है. भारतीय थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के अध्यक्ष प्रताप भानु मेहता ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा, "राहुल गांधी अब पार्टी के लिए लगातार बोझ बनते जा रहे हैं." मेहता के मुताबिक राहुल गांधी के खिलाफ कोई खुली बगावत नहीं है और इसलिए पार्टी आज इस बिंदु तक पहुंची है.
नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के जाने माने फेलो और पर्यवेक्षक अशोक मलिक कहते हैं, "मोदी असरदार हैं और 24 घंटों उनकी मौजूदगी दिखाई देती है. राहुल गांधी के रहते उनके लिए कोई मुकाबला ही नहीं है." गोवा और मणिपुर जैसे जिन राज्यों में कांग्रेस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, वहां भी बीजेपी ने उसे मात देते हुए अपनी गठबंधन सरकारें बना लीं.
भारतीय चुनावों पर 'व्हेन क्राइम पेज' नाम से किताब लिखने वाले और वॉशिंगटन के कारनेगी एंडोवमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के सीनियर फेलो मिलन वैष्णव कहते हैं, "कांग्रेस ने पहले भी वापसी की है, लेकिन अपनी कमियों को दूर करने की इच्छा उन्होंने कभी नहीं दिखाई." बहुत से विश्लेषक मानते हैं कि राहुल गांधी या उनकी बहन प्रियंका गांधी के लिए एक विकल्प यह हो सकता है कि वह पार्टी की केंद्रीय कमान अपने हाथ में रखें और राज्य स्तर पर नेताओं की एक पीढ़ी तैयार करें जो मतदाताओं के बीच पार्टी का आधार तैयार कर सकें.
इसके अलावा प्रांतीय और स्थानीय स्तर पर गठबंधन बना कर बीजेपी को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है. हालांकि विश्लेषकों को इस बात की कम ही उम्मीद है कि कोई भी विपक्षी गठबंधन मोदी के दूसरे कार्यकाल में कोई अड़चन बनेगा. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का समाजवादी पार्टी से गठबंधन बेअसर साबित हुआ. राहुल गांधी के अमेठी तक में पार्टी चारों सीटें हार गई.
एके/एमजे (रॉयटर्स)