अब अफ्रीका में बनेंगे सस्ते कपड़े
२६ अगस्त २०१३एचएंडएम वैसे तो स्वीडन की कंपनी है, लेकिन दुनिया भर में इसके शोरूम हैं, खास तौर से यूरोप और अमेरिका में. इस कंपनी को पश्चिमी बाजार में सस्ते दामों पर कपड़े बेचने के लिए जाना जाता है. कपड़ों के सस्ते दामों के पीछे वजह है, एशियाई देशों में लगी फैक्ट्रियां.
एचएंडएम की अधिकतर फैक्ट्रियां चीन, भारत और बांग्लादेश में हैं. इन देशों में कम वेतन पर कारीगर मिल जाते हैं, इसलिए कंपनी का खर्च कम हो जाता है. एचएंडएम की तरह अन्य कंपनियां जैसे जारा, वेरो मोडा, मैंगो इत्यादि भी इसी तरह काम करती हैं. अफ्रीका में मोरक्को और ट्यूनीशिया में भी इन कंपनियों की फैक्ट्रियां हैं, जबकि घाना और केन्या पर अब तक इनकी नजर नहीं पड़ी है.
बेहतरीन विकल्प
एचएंडएम का कहना है कि इथियोपिया तेजी से तरक्की कर रहा है. ऐसे में देश में निवेश करना एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है. मौसम के लिहाज से भी इथियोपिया एक बेहतरीन जगह है. यहां के मौसम में कपास की खेती अच्छे से हो सकती है. साथ ही यह समुद्र के पास भी है, यानी स्वेज नहर के रास्ते जल्द ही यूरोप तक पहुंचा जा सकता है. इस से सामान पहुंचाने का समय एक तिहाई तक कम किया जा सकता है.
देश की सरकार भी इस ओर ध्यान दे रही है. 2016 तक सरकार की कपड़ा उद्द्योग पर खास ध्यान देने की योजना है. तब तक एक अरब डॉलर के कपड़ों के निर्यात की बात कही गयी है. ऐसी उम्मीद की जा रही है कि 2016 तक देश की विकास दर सात से आठ फीसदी बढ़ जाएगी. एचएंडएम के प्रवक्ता ने कहा है कि देश में फैक्ट्रियों की जांच की जा चुकी है और इनमें हर महीने करीब दस लाख कपड़े तैयार किए जाएंगे.
सस्ते कपड़ों की असली कीमत
एक तरफ कंपनी अपना विस्तार कर रही है तो दूसरी तरफ जानकारों को इस बात की चिंता भी सता रही है कि इथियोपिया का हाल कहीं बांग्लादेश जैसा न हो जाए. हाल के दिनों में बांग्लादेश की कपड़ा फैक्ट्रियों में आग लगने या इमारत के गिर जाने की खबरें आई. अप्रैल में हुए एक हादसे में तो एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत भी हुई.
इन हादसों ने यह साफ कर दिया कि सस्ते कपड़ों की असली कीमत कौन चुका रहा है और इन फैक्ट्रियों में लोग किन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं. ऐसे में कंपनियों को भी अपनी प्रतिष्ठा की चिंता सता रही है और वे बांग्लादेश के बाहर उससे भी सस्ते विकल्प खोजने में लगी हैं.
तरक्की की उम्मीद
अन्य कामों के विपरीत यहां कारीगरों का पढ़ा लिखा होना जरूरी नहीं. जर्मन एफ्रिकन बिजनेस असोसिएशन के क्रिस्टोफ कानेनगीसेर का मानना है कि ऐसी नौकरियों से विकासशील देशों को फायदा मिल सकता है, "जितने ज्यादा लोग यहां काम करेंगे और जितने ज्यादा यहां कमाएंगे, उतना ही वे अपनी सेहत का और बच्चों की पढ़ाई का ध्यान रख सकेंगे और उस समाज का शिक्षा स्तर तेजी से बढ़ सकेगा."
इथियोपिया एक गरीब देश है, जहां मूलभूत सुविधाओं की कमी है, अच्छी सड़कें नहीं हैं और केवल 15 फीसदी लोगों तक ही बिजली पहुंच पाती है. ऐसे में सरकार भी इस तरह के निवेश से तरक्की की उम्मीद कर रही है.
रिपोर्ट: मार्टिन कॉख /ईशा भाटिया
संपादन: आभा मोंढे