अदालत कर्मियों पर भारी है कोरोना लॉकडाउन
२५ अगस्त २०२०कोविड-19 के प्रभाव से समाज में प्रतिष्ठित वकालत का पेशा भी अछूता नहीं रहा. बिहार में मार्च से प्रभावी लॉकडाउन के कारण कोर्ट परिसर सूने पड़ गए. जहां रोज चहल-पहल रहती थी, वहां सन्नाटा सा है. कुछ दिनों की बंदी के बाद वर्चुअल कोर्ट के जरिए दलीलें सुनी गईं, फैसले किए गए. किंतु न्याय दिलाने में मदद करने वाले इन अधिवक्ताओं की बड़ी संख्या व इनसे जुड़े अन्य पेशेवरों को कोई खास लाभ नहीं हुआ. नतीजतन इनके समक्ष रोजी-रोटी का संकट आ खड़ा हुआ. जैसे-जैसे लॉकडाउन खिंचता गया, आर्थिक संकट गहराता गया. धीरे-धीरे धैर्य भी चूक रहा है, तभी तो ज्यादातर अधिवक्ताओं ने वर्चुअल कोर्ट का विरोध करना शुरू कर दिया है. बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने भी सुप्रीम कोर्ट तथा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश से कोरोना प्रोटोकॉल का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए फिजिकल हियरिंग शुरू किए जाने की अपील की है.
वकीलों को रास नहीं आ रही वर्चुअल व्यवस्था
वकीलों की बड़ी तादाद निचली अदालतों में है. ये अदालतें देश भर में फैले जिलों और तहसीलों में हैं. ज्यादातर शहरों के बाजार ऐसे नहीं जहां कंप्यूटर और डिजीटल तकनीक से जुड़े दूसरे उपकरण आसानी से मिलें. इसलिए इन अदालतों में मुकदमों की पैरवी करने वाले वकीलों के लिए वर्चुअल व्यवस्था में ढलना टेढ़ी खीर साबित हो रही है. एक तो वे डिजिटल दुनिया से बहुत परिचित नहीं हैं और दूजे संसाधनों का भी अभाव है. बहुसंख्यक वकीलों की आर्थिक स्थिति रोज के मुकदमों की सुनवाई पर निर्भर करती है. इस वजह से वर्चुअल सिस्टम के लिए जरूरी उपकरणों की तत्काल व्यवस्था करना भी इनके लिए दुरूह कार्य है. मुकदमों की पैरवी से मिलने वाली फीस ही अधिकतर वकीलों के जीविकोपार्जन का साधन है.
वकालत के पेशे के लोगों की यही व्यथा समझ कर बीसीआई के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट तथा देश के सभी हाईकोर्ट की ई-कमेटी से कहा है, "वर्चुअल व्यवस्था को कारगर बनाने के लिए आवश्यक है कि अधिवक्ताओं को ई-फाइलिंग की ट्रेनिंग दी जाए." इसी कड़ी में बीसीआई ने केंद्र व राज्य सरकार की साझेदारी से देशभर के जरूरतमंद अधिवक्ताओं को ई-फाइलिंग तथा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मुकदमों की पैरवी करने के लिए आईपैड या लैपटॉप उपलब्ध कराए जाने की मांग की है. इतना ही नहीं बीसीआई ने वकील संघों के दफ्तर में वाई-फाई की मुफ्त व्यवस्था करने, स्कैनर व कंप्यूटर सिस्टम लगाने की भी बात कही है. सभी अदालतों में ट्रेनर की व्यवस्था करने की भी मांग की गई है.
राष्ट्रीय बार काउंसिल के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से यह आग्रह भी किया है कि सभी कोर्ट में फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन तय करते हुए जल्द से जल्द फिजिकल हियरिंग की पुरानी व्यवस्था लागू की जाए. पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता शेखर सिंह कहते हैं, "पहले की तुलना में बहुत कम केस दायर किए जा रहे हैं. ई-फाइलिंग व वर्चुअल कोर्ट में भी सुनवाई के दौरान तकनीकी अवरोधों का सामना करना पड़ता है. एक पहलू यह भी है कि फिजिकल हियरिंग के दौरान मामलों को जिस तरह से पेश किया जाता है, वर्चुअल कोर्ट में वकील वैसा नहीं कर पा रहे हैं."
लंबित मुकदमों का बढ़ता अंबार
लॉकडाउन के कारण फिजिकल फाइलिंग व हियरिंग नहीं होने से डिस्पोजल रेट काफी कम हो गया है. पहले ही मुकदमों का अंबार था और अब स्वाभाविक है, लंबित मुकदमों की संख्या काफी बढ़ जाएगी. पेंडेंसी ऑफ केसेज ज्यादा होने से अगले कई साल तक अदालतों की कार्यवाही प्रभावित होगी. आर्थिक संकट का सामना तो वकीलों को करना पड़ ही रहा है. हाईकोर्ट के ही अधिवक्ता मनींद्रनाथ तिवारी कहते हैं, "अदालतों में वर्चुअल सिस्टम के तहत वैसे ही मामलों की सुनवाई की जा रही है जो नितांत आवश्यक हैं. इसका असर यह हो रहा कि पटना हाईकोर्ट में अमूमन जहां रोजाना चार-पांच सौ मामलों की सुनवाई होती थी, उसकी जगह बमुश्किल अब करीब सौ-सवा सौ मामलों की सुनवाई हो रही है. इस वजह से एक तरफ जहां लंबित मुकदमों की संख्या बढ़ती जा रही है वहीं दूसरी तरफ हम वकीलों की आमदनी भी प्रभावित हो रही है." जब सुनवाई ही नहीं होगी तो मुवक्किल वकील को पैसा क्यों देगा. यही वजह है कि वकीलों की रोजी-रोटी संकट में है.
पटना सिविल कोर्ट के अधिवक्ता राजेश कुमार कहते हैं, "निचली अदालतों में अमूमन जिला जज के अलावा कुछ एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज व कुछ मजिस्ट्रेट ही सुनवाई कर रहे हैं, भले ही दावे कुछ भी किए जाएं. केस का निपटारा होना तो दूर हमारा नंबर ही नहीं आ रहा. केस तो सभी तरह के फाइल हो रहे हैं, लेकिन ऑनलाइन या व्हाट्सएप कॉल के जरिए सुनवाई भी केवल जमानत के जरूरी मामलों की हो रही है. सिविल, फैमिली कोर्ट व ट्रायल का काम बिल्कुल ठप पड़ा है." जिन वकीलों के पास शहरों में रहने के लिए कोई बैकअप नहीं है, वे शहर छोड़ अपने गांव लौट गए हैं. सिविल कोर्ट के ही एक अन्य वकील कहते हैं, "जमानत के मामले भी एक वकील को रोजाना बमुश्किल एक-दो ही मिल पाते हैं. इसमें भी रिस्ट्रिक्शन है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भला हो कि शराबबंदी लागू रहने के कारण जमानत के मामले आते रहते हैं अन्यथा क्या होता, यह तो भगवान ही जानते हैं."
दानापुर व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ता अभिषेक कहते हैं, "जिला अदालतों के 95 प्रतिशत वकील तनाव में हैं. इनमें कई तो अपनी रोजमर्रा की जरूरत की चीजों की भी व्यवस्था नहीं कर पा रहे. हाईकोर्ट को ऐसे वकीलों की मदद के लिए राज्य सरकार को निर्देश देना चाहिए." नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर एक अधिवक्ता कहते हैं, "होली व लॉकडाउन के कारण तो दो महीने आमदनी बिल्कुल ठप रही. वकील अपने क्लाइंट को एडवांस पेमेंट के लिए नहीं कह सकता. अब थोड़ी बहुत शुरू हुई है. मकान का तीन महीने का किराया 27,000 रुपये देना है हालांकि हमारे मकान मालिक ने स्थिति सुधरने पर पैसे देने की बात कही है. पिताजी भी मेरी मदद करते हैं किंतु बार-बार उनसे पैसा मांगना अच्छा नहीं लगता. पता नहीं कब स्थिति सामान्य होगी."
यही वजह है कि अब वर्चुअल कोर्ट का विरोध मुखर होता जा रहा है. सोमवार को पटना जिला अधिवक्ता संघर्ष मोर्चा के बैनर तले धरना दे रहे वकीलों ने कहा, "इस साल मार्च महीने से ही कोर्ट बंद है. जमानत जैसे खास मामले में ही अदालत सुनवाई कर रही है. वर्चुअल के नाम पर वकीलों को भ्रमित किया जा रहा है. 99 प्रतिशत वकीलों को यह पता नहीं चल पाता है कि थाना केस डायरी को वर्चुअल रूप से ही सही, भेज रहा है या नहीं. ऑर्डरशीट व अगली तारीख मिलने में भी कठिनाई हो रही है. फिजिकल एपीयरेंस शुरू होने तक धरना जारी रहेगा."
कोर्ट से जुड़े लोगों की रोजी-रोटी पर भी आफत
बिहार स्टेट बार काउंसिल के अनुसार पटना हाईकोर्ट में अधिवक्ताओं की संख्या करीब 12,000 है जबकि राज्य भर में इनकी संख्या एक लाख है. वकीलों के लिए काम करने वाले मुंशी (एडवोकेट क्लर्क) भी अच्छी खासी संख्या में हैं. इनके अलावा कई तरह के व्यवसाय करने वाले ऐसे लोग हैं जिनकी आमदनी अदालतों के ठप रहने से बुरी तरह से प्रभावित हुई है. अदालत परिसरों में सन्नाटे के कारण फोटोस्टेट करने वाले, चाय-नाश्ते व भोजन की दुकान चलाने वाले, टाइपिस्ट, कंप्यूटर ऑपरेटर, फोटो बनाने वाले, स्टांप बेचने वाले, स्टेशनरी व कानून की किताब की दुकान वाले और जिल्दसाज भी आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं.
वजह साफ है, इन सबों की आमदनी का जरिया भी वे मुवक्किल ही थे जो अपने मुकदमों की पैरवी के सिलसिले में स्वयं या गवाहों के साथ कोर्ट आते थे. पटना हाईकोर्ट परिसर में किताब की दुकान के संचालक संदीप बताते हैं, "मार्च से ही बिक्री ठप है. बाहर से लोग आ नहीं रहे. लिखने-पढ़ने का काम बंद हो गया है. आमदनी न होने या कम जाने से वकील भी कानून की किताब खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे." हाईकोर्ट परिसर के पास चाय-नाश्ते की दुकान चलाने वाले राममोहन कहते हैं, "लॉकडाउन के पहले हजार रूपये तक की बिक्री हो जाती थी. अच्छे से गुजारा हो रहा था. अब तो पूछिए मत, सौ-दो सौ पर भी आफत. क्या होगा, यह तो ऊपरवाला ही जाने."
वकीलों की समस्याओं को देखते हुए बिहार स्टेट बार काउंसिल ने जरूरतमंद वकीलों के बीच दो करोड़ रुपये की राशि वितरित करने का निर्णय लिया था. इसके अलावा बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने बिहार के वकीलों को मदद के तौर पर एक करोड़ की राशि देने की घोषणा की थी. बताया जा रहा है कि बाद में यह राशि पांच करोड़ हो गई. जिला अधिवक्ता संघों के माध्यम से बिहार स्टेट बार काउंसिल को नाम भेजे गए थे. अब इन जरूरतमंद वकीलों को सहायता मिलनी शुरू हो गई है. दावा किया जा रहा है कि करीब 24000 वकीलों की आर्थिक सहायता की गई है. कुछ वकीलों के खाते में दो हजार रुपये की सहायता राशि आई है. लेकिन यह राशि अधिवक्ताओं के लिए नाकाफी है. इतना तो तय है कि जब तक अदालतों में फिजिकल हियरिंग की पुरानी व्यवस्था चालू नहीं होगी तब तक संकट बरकरार रहेगा. कोविड प्रोटोकॉल के दायरे में अदालतों को इसका उपाय ढूंढना होगा, ताकि आमजन को न्याय दिलाने में मददगार अधिवक्ता जरूरतमंदों को त्वरित न्याय दिलाने में एकबार फिर से सक्रिय भूमिका निभा सकें.
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