अंतरिक्ष के लिए अहम साल
२ जनवरी २०१३कुख्यात क्षुद्रग्रह एपोफिस इस साल 10 जनवरी को पृथ्वी से करीब 1.5 करोड़ किलोमीटर की दूरी से गुजरेगा. अंतरिक्षविज्ञानी बड़ी बेसब्री से उसके रास्ते पर नजर रखे हुए हैं. दूरबीन और रडार एंटेना के जरिए उसके रास्ते की पहचान की जा रही है और आंकड़े जमा किए जा रहे हैं. करीब 300 मीटर चौड़ा यह क्षुद्रग्रह डेढ़ दशक बाद एक बार फिर पृथ्वी के करीब आएग और तब यह कुछ दिक्कत पैदा कर सकता है. 13 अप्रैल 2029 को यह पृथ्वी की सतह से महज 30 हजार किलोमीटर दूर होगा. यह दूरी पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगा रहे संचार और मौसम उपग्रहों से भी कम है. यह उपग्रह विषुवत रेखा से करीब 36000 किलोमीटर की दूरी पर हैं.
इसके सात साल बाद 10 हजार में एक बार यह संभावना भी है कि एपोफिस शायद पृथ्वी से टकरा जाए और अगर ऐसा हुआ तो बड़े भारी नतीजे हो सकते हैं. ऐसे में सबका ध्यान इस बात पर है कि एपोफिस के रास्ते पर नजर रख रहे वैज्ञानिक रडार और दूरबीन के सहारे क्या जानकारी जुटा पाते हैं. उम्मीद की जा रही है कि वो यह दावा कर सकेंगे कि क्षुद्रग्रह 2036 में पृथ्वी से नहीं टकराएगा.
बाल बाल बचेंगे फरवरी में
मध्य फरवरी में एक और क्षुद्रग्रह 2012 डीए 14 इस बारे में कुछ जानकारी दे सकेगा कि एपोफिस कितना पास आएगा. यह ग्रह पृथ्वी से कोई 24000 किलोमीटर तक करीब आ जाएगा लेकिन इसके पृथ्वी से टकराव के कोई आसार नहीं हैं. 15 फरवरी की शाम आकाश में झांकने वाले लोगों को 2012 डीए 14 दूरबीन के सहारे नजर आ जाएगा. 40 मीटर से कभी कम चौड़ा यह क्षुद्र ग्रह अगर कभी पृथ्वी से टकरा भी जाए तो इसका असर बहुत थोड़ा और स्थानीय स्तर पर ही होगा.
अगर कोई ग्रह बहुत सुराखों से भरा हो तो यह पृथ्वी के वातावरण में ही बिखर जाएगा. ऐसे में अगर यह धातु का बना होगा तभी यह पृथ्वी पर कोई असर डालेगा या गड्ढा बनाएगा. इन क्षुद्रग्रहों का 2013 में पृथ्वी के करीब आने से कोई नुकसान नहीं हैं लेकिन यह जरूर पता चल जाता है कि आने वाले सालों में पृथ्वी लगातार अंतरिक्ष से होने वाली बमबारी के खतरे की जद में रहेगी.
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी एसा ज्यादा खतरनाक क्षुद्रग्रहों की पहचान के लिए अपने निगरानी के तंत्र को बढ़ाने पर काम कर रहे हैं. साथ ही इनसे बचाव के लिए मिशन की योजना बनाई जा रही है. संयुक्त राष्ट्र की एक कमेटी इस बारे में अपने दिशा निर्देश फरवरी में पेश करेगी.
मार्च और नवंबर में धूमकेतू
धूमकेतू पैन स्टार्स मार्च में अचानक सौर मंडल की गहराइयों से निकल कर सामने आएगा. हवाई के पैन स्टार्स टेलिस्कोप ने मार्च 2011 में इसकी खोज की थी. 10 मार्च 2011 को यह धूमकेतू सूर्य के सबसे नजदीकी मार्ग से गुजरेगा और इसी वक्त यह पृथ्वी के करीब भी आएगा. इस दौरान पृथ्वी के सबसे करीबी ग्रह बुध की तुलना में यह ज्यादा करीब होगा. सूरज का चक्कर लगाने के बाद पैन स्टार्स पाइसेज और एंड्रोमेडा से गुजरेंगे और इस दौरान इन पर आसानी से नजर रखी जा सकेगी. अंतरक्षविज्ञानियों का आकलन है कि इस दौरान यह नंगी आंखों से भी देखे जा सकेंगे.
सास ते आथिक में एक और धूमकेतू आईएसोएन और ज्यादा सुंदर नजारा दिखाएगा. बर्फ का यह पिंड पिछले साल सितंबर में खोजा गया. 28 नवंबर 2013 को यह सूर्य से महज 20 लाख किलोमीटर की दूरी पर होगा. सूर्य के इतने करीब जाने का मतलब है कि बर्फ और धूल उबलने लगेंगे जाहिर है कि दिन के उजाले में भी यह धूमकेतू सूरज के साथ ही नजर आएगा. सूरज के इतने करीब पहुंचने के बाद भी अगर यह बच गया तो एक चमकीली रोशनी के रूप में यह क्रिसमस की रातों तक नजर आता रहेगा.
ज्यादा ग्रहण नहीं
चांद और सूरज की आंखमिचौली तुलनात्मक रूप से इस साल थोड़ी कम रहेगी. 25 अप्रैल को पूरा चांद केवल पृथ्वी के साए को छूएगा जिससे इसका महज एक फीसदी हिस्सा ही अंधेरे में डूबेगा. इसे यूरोप, अफ्रीका के साथ ही ऑस्ट्रेलिया और एशिया के बड़े हिस्से में देखा जा सकेगा. हालांकि 9 और 10 मई को ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और मध्य प्रशांत के लोगों को सूर्यग्रहण के रूप में रिंग ऑफ फायर का नजारा देखने को मिलेगा. 3 नवंबर 2013 को साल का एक मात्र पूर्ण सूर्यग्रहण होगा. पूर्ण सूर्यग्रहण पूरे अटलांटिक के साथ ही गेबॉन, कॉन्गो, यूगांडा और केन्या में नजर आएगा. सूर्यग्रहण पूरे अफ्रीका में नजर आएगा लेकिन पूर्ण रूप में नहीं. इसके साथ ही इसे अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका के उत्तरी हिस्से, दक्षिण यूरोप और अरब प्रायद्वीप में देखा जा सकेगा.
चुंबकीय क्षेत्र उपग्रह
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी एसा के लिए साल 2013 की सबसे बड़ी चुनौती तीन स्वार्म उपग्रहों की लॉन्चिंग है जो अप्रैल में होनी है. इन्हें बनाने वाली कंपनी एस्ट्रियम का कहना है कि यह उपग्रह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की ऐतिहासिक खोज करेंगे. स्वार्म मिशन एसा को पृथ्वी पर वैज्ञानिक तरीके से निगरानी रखने वाली एजेंसियों के बीच अहम जगह दिला देगा. मिशन के लिए उपकरण तो एक साल पहले ही तैयार हो गए थे लेकिन इन्हें लेकर जाने वाले रूसी रॉकेट में दिक्कत होने के कारण अभियान को टाला गया. 2013 में इसे लॉन्च करने के बाद यह उपग्रह अपनी स्थिति से लेकर पृथ्वी से 500 किलोमीटर की दूरी तक के आंकड़े भेजेंगे.
इस बीच चीन भी मानवयुक्त यान को अंतरिक्ष स्टेशन तियांगोंग तक भेजने की तैयारी में जुटा है. राजनीतिक स्तर पर इस साल यह कोशिश भी रहेगी कि चीन को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में साझीदार बनाया जाए हालांकि अब तक अमेरिका इससे साफ इनकार करता रहा है.
रिपोर्टः डिर्क लोरेंसेन/एनआर
संपादनः महेश झा