अंगदान है जीवनदान
२७ मार्च २००९भारत में अंगदान को लेकर आज भी कई अंधविश्वास हैं, ऐसे अंधविश्वास, जिन्हें तोड़ने के लिए मानवता और विज्ञान को कई तर्क देने पड़ते हैं.
सऊदी अरब के एक अस्पताल में कई दिनों से निढाल और बेज़ुबान पड़ा एक शख़्स. डॉक्टर कहते रहे कि मरीज़ के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया है. वो अब एक ज़िंदा लाश है, कुछ नहीं कर सकता. कुछ नहीं कह सकता. ये भी कहा गया कि परिवार अगर चाहे तो उसके दिलासे के लिए मरीज़ के चेहरे पर हमेशा ऑक्सीजन का मास्क लगा दिया जाएगा...शरीर पर कई सूइयां गोद दी जाएंगी. मशीनें उनके बेटे की हालत पर हर समय बीप-बीप करती रहेंगी. परिवार से कहा गया कि आप अगर चाहें तो इसी तरह ज़िंदगी भर अस्पताल में उसे देख सकते हैं या फिर.....
बेहाल परिवार कुछ महीनों तक अस्पताल के अंदर इलाज पर पैसा ख़र्च करता रहा...बाहर मंदिर-मस्जिद में सलामती की दुआएं करता रहा, लेकिन निराशा ही हाथ लगी.
आख़िरकार परिवार ने फ़ैसला किया अपने जिगर के टुकड़े को अलग करने का. घरवाले नहीं चाहता थे कि चत्मकार की उम्मीद में उनका लाडला तिल-तिल कर मरता रहे.
आख़िरकार सऊदी अरब की राजधानी रियाद में उस शख़्स ने आखिरी सांस ली. उसका परिवार रोता रहा, जबकि नौ अन्य परिवारों की जिंदगी में एक नई सुबह हुई.
दुनिया छोड़ चुके अपने लाडले के कई अंग परिवार ने दूसरे मरीज़ों को दान करने का फ़ैसला किया. परिवार के फैसले से साफ हो गया कि मौत के बाद भी उनके बेटे का दिल धड़केगा, उसके फेफड़े सांस भी लेंगे..लेकिन शरीर किसी और का होगा...सूरत किसी और की होगी पर सकून कइयों का होगा.
नौ लोगों के शरीर में उस शख्स के दिए अंग लगाए लगाए गए. काफी देर तक चले ऑपरेशन के बीच-बीच में डॉक्टर नौ परिवारों की तरफ़ देख कर उनका हौसला बढ़ाते और एक परिवार की तरफ़ मायूसी से देखते रहे.
आख़िरकार, जेद्दा की एक महिला उस शख़्स के दान किए फेफड़ों की मदद से ज़ोर-ज़ोर से सांसे भरने लगी. आठ साल से सांस की बीमारी से लड़ रही महिला की मौत को उस शख़्स ने मात दी..जो खुद दुनिया से चला गया.
दुनिया में ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि एक शख़्स के अंग नौ लोगों के काम आए और सभी बच गए. भारत के मशहूर अस्पतालों में से एक अपोलो के अंग प्रत्यारोपण के विशेषज्ञ डॉक्टर पुनीत दुर्गल कहते हैं:
"एक ब्रेन डेड आदमी से किडनी ली जा सकती है, हार्ट लिया जा सकता है, लीवर लिया जा सकता है., फेफड़े लिए जा सकते हैं, कॉर्निया लिया जा सकता है."
सऊदी अरब में अंग दान करके दुनिया से विदा हो चुके इस भारतीय युवक की कहानी सुनकर चेन्नई की एक नन की भी याद आती है. 80 फीसदी अंकों के साथ 12वीं पास होकर नन बनीं सिस्टर आशा..भी कई बच्चों की ज़िंदगी में उजाला भर कर गईं. आशा के अंग दान कर देने का फैसला उनके पिता का था. अस्पताल को अपनी बेटी की मौत की इजाज़त देने वाले आशा के पिता ज़ेवियर रोते हुए बोलेः '' उसके अंग दूसरे बच्चों को दिए जाएंगे, मुझे खुशी है कि मेरी बच्ची किसी और के ज़रिए ज़िंदा रहेगी.''
लेकिन ऐसा कहने की हिम्मत विरले लोगों में ही होती है. भारत में अंग दान को लेकर डॉक्टर और मरीज़ कई अंधविश्वासों का भी सामना करते हैं. कई मरीज़ तो इंतज़ार में ही दम तोड़ देते हैं. डॉक्टर पुनीत कहते हैः
"कई लोग समझते हैं कि अगर अंग दान कर देंगे तो अगले जन्म में वो हिस्से शरीर में नहीं होंगे."
वैसे, इन दो भारतीयों की कहानी ये साबित करती है कि ब्रेन डेड होने के बाद भी कुछ लोग..विज्ञान को भी चत्मकार करने की ताकत दे रहे हैं.
रिपोर्टः ओंकार जनोटी
संपादनः राम यादव